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समय पर ईलाज न मिलने से घातक हो सकता है रह्यूमेटाइड आर्थराइटिस
इंदौर. रह्यूमेटाइड आर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें जोड़ों में दर्द होता है और सूजन आ जाती है. इस बीमारी से शरीर का कोई भी जोड़ प्रभावित हो सकता है. अधिकतर यह हाथ या पैरों के जोड़ों में देखने को मिलती है और उसमें विकृति आ जाती है. लक्षण दिखने के 6 माह के अंदर इसका ईलाज शुरू हो जाए तो इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है. अन्यथा यह जीवन के लिए घातक साबित हो सकती है.
यह बात रह्यूमेटोलॉडिस्ट डॉ. सौरभ मालवीय ने पत्रकरों से चर्चा करते हुए कही. वे रह्यूमेटोइड आर्थराइटिस पर चर्चा कर रहे थे. उन्होंने चर्चा करते हुए आगे कहा कि हाथ-पैर के जोड़ों में 4 से 6 हफ्तों तक ज्यादा दर्द और सुबह उठने में ज्यादा जकडऩ हो तो यह रह्यूमेटोइड आर्थराइटिस के लक्षण है. ऑट इम्यून बीमारी होने के कारण जोड़ के अलावा यह शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है. इसमें कई मामलों में लंग्स सिकुड़ जाते है. आंखे लाल हो जाती है और गलने भी लगती है. 10 प्रतिशत मामलों में हाथ-पैर की नसें भी खराब हो जाती है. हार्ड अटैक के चांसेस भी बढ़ जाते हैं.
इसमें शुरू के दो सालों में ही घुटने के जोड़ घिस जाते हैं और गर्दन का भी जोड़ खराब हो सकता है. इस बीमारी के लक्षणों को सही समय पर पकड़ लिया जाए और ईलाज शुरू कर दिया तो बीमारी पर नियंत्रण संभव हो जाता है. एक प्रतिशत लोग प्रभावितडॉ. मालवीय ने बताया कि 30-50 आयु वर्ग के लोग अधिकतर इस बीमारी का शिकार होते हैं.
लेकिन बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक इस पर बीमारी का शिकार हो सकते हैं. पुरूषों के मुकाबले महिलाओं में यह बीमारी ज्यादा है. वैसे तो यह हार्मोनल चैंजेस के कारण बीमारी ज्यादा होती है. अनुवांशिक मामले तीन प्रतिशत ही होते हैं. भारत में 1 प्रतिशत लोग इस बीमारी से प्रभावित है. हालांकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती है.
उन्होंने बताया कि रह्यूमेटोइड आर्थराइटिस को अक्सर गलती से ऑस्टियो आर्थराइटिस मान लिया जाता है. इसलिए रोगियों को रह्यूमेटोइड आर्थराइटिस के किसी भी लक्षण का अनुभव होने पर उचित चिकित्सकीय परामर्श लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इसके लिए रह्यूमेटोलॉजिस्ट से ही सलाह लेनी चाहिए. रूमैटोलॉजिस्ट आरए के लक्षणों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकता है, जिससे रोगियों को बेहतर गुणवत्ता वाला जीवन मिल पाता है
रूमैटॉइड आर्थराइटिस के असर को समझें
रूमैटॉइड आर्थराइटिस (आरए) एकक्रॉनिक इन्फ्लेमेटरी डिसऑर्डर है। यह तब होता है, जब प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से जोड़ों पर ही हमला करने लगती है। इसके चलते जोड़ों के आसपास के ऊतकों में दर्द होता है और सूजन आ जाती है। अंदाजन दुनिया की लगभग 1% आबादी आरए से ग्रस्त है। आरए के मामलों में योगदान देने वाले कारकों में आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों के साथ-साथ धूम्रपान भी शामिल है।
उम्र और लिंग कुछ भी हो, आरए किसी को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन आमतौर पर यह 30 से 50 वर्ष के बीच के आयुवर्ग में देखा जाता है। हालांकि आरए के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन इसके आम लक्षणों में जोड़ों में पीड़ादायक सूजन, कठोरता और उनमें गति कम होना शामिल हैं। यदि आरए का इलाज न करवाया जाए, तो हड्डी का क्षरण और जोड़ों में विकृति हो सकती है। जोड़ों के अलावा, आरए शरीर के कई अन्य हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है, जिनमें त्वचा, आंखें, हृदय, फेफड़े, अस्थि मज्जा और वाहिकाएं, गुर्दे आदि शामिल हैं।
बीते बरसों के दौरान आरए के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। आने वाले मरीज आमतौर पर 30-50 वर्ष आयुवर्ग के होते हैं। आरए के रोगी अक्सर अलग-थलग भी पड़ जाते हैं। वे रोजाना ही दर्द से जूझते हैं,जिसके चलते उन्हें जिंदगी में समझौता करना पड़ता है। इस बीमारी से निपटने के लिए महत्वपूर्ण रणनीतियों में से एक है जागरूकता। यह रोग के संकेतों और तंत्र को लेकर लोगोंको जानकार बनानेऔरउन्हें समय पर परामर्श, जांच, उपचार आदि की तलाश के लिए प्रोत्साहित करने के लिहाज से महत्वपूर्ण है।
आरए को अक्सर गलती से ऑस्टियो आर्थराइटिस मान लिया जाता है; इसलिए रोगियों को आरए के किसी भी लक्षण का अनुभव होने पर उचित चिकित्सकीय परामर्श लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। भले ही आरए का पूरी तरह से उपचार संभव नहीं है, लेकिन जोड़ों में स्थायी नुकसान होने का सबसे आम कारण है किसी रूमैटोलॉजिस्ट से चिकित्सा सलाह लेने में देर कर देना। एक रूमैटोलॉजिस्ट आरए के लक्षणों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकता है, जिससे रोगियों को बेहतर गुणवत्ता वाला जीवन मिल पाता है।
आरए के रोगी इन दैनिक उपायों को अपना सकते हैं:
· धूम्रपान न करें और पैसिव धूम्रपान से भी दूर रहें
स्वास्थ्यवर्धक और संतुलित आहारलें
· जोड़ों पर दबाव और तनाव न पड़ने दें
· चीनी का सेवन कम कर दें
· सैर और योग के रूप में दैनिक व्यायाम करें
· अधिक फल और सलाद का सेवन करें
· अपने जोड़ों को नियमित रूप से उचित आराम दें
· तले हुए और तैलीय खाद्य पदार्थों से बचें
डॉक्टर सौरभ मालवीय कहते है, ‘‘रूमैटॉयड आर्थराइटिस (आरए) 200 ऑटो इम्यून बीमारियों में से एक है. भारत की करीब एक प्रतिशत आबादी इस समस्या का सामना कर रही है. अकेले इंदौर में ही रोगियों में आरए की पहचान कर उसका इलाज किया गया। अगर किसी व्यक्ति को सुबह-सुबह जोड़ों में दर्द की शिकायत होती है और यह समस्या लगातार 4 से 6 हफ्ते तक बनी रहती है तो उसे फौरन डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। रूमैटॉयड आर्थराइटिस की जल्दी पहचान होने, एक संतुलित आहार लेने एवं नियमित व्यायाम करने से इसका निदान किया जा सकता है।”
उन्होंने आगे कहा, ‘‘चूँकि महिलाओं में हार्मोन्स का असंतुलन होता रहता है इसलिए उन्हें रूमैटॉयड आर्थराइटिस से प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है. इस बीमारी का औसत रेशियो महिलाओं और पुरुषों के मध्य 9:1 है. रूमैटॉयड आर्थराइटिस आम तौर पर उन लोगों को होता है जिनकी उम्र 30 से 50 साल के बीच हैं. तकरीबन 95 प्रतिशत लोगों में इसकी पहचान नहीं हो पाती है.’’
‘‘मेरे क्लिनिक में इस बीमारी से पीड़ित जिस सबसे छोटे रोगी का उपचार किया गया वह एक साल का था. इस स्थिति को जुवेनाइल रूमैटॉयड आर्थराइटिस कहा जाता है. बच्चों में इस बीमारी को शुरुआत में ही पहचानने का सबसे आसान तरीका है कि बच्चे की प्रतिदिन की गतिविधि पर चौकस निगाह रखी जाए. अगर उन्हें खाने में या चलने में मुश्किलें आ रही हैं, तो डॉक्टर से सलाह लेने का यह सही समय है.’’
इस बीमारी की पहचान और इलाज करने पर टिप्पणी करते हुए डॉक्टर मालवीय ने कहा, ‘‘रूमैटॉयड आर्थराइटिस की पहचान के लिए एंटी-साइक्लिक सिट्रुलिनेटेड पेप्टाइड परीक्षण, एरिथ्रोसाइट सेडीमेंटेशन रेट टेस्ट और आरए फैक्टर टेस्ट आदि जैसे आम परीक्षण किए जाते हैं. हालांकि बायोलॉजिकल थैरेपीज के आने के बाद इस बीमारी की उपचार तकनीकों में सुधार हुआ है. बायोलॉजिकल थेरैपीज को टैबलेट या इंजेक्शंस के माध्यम से लिया जा सकता है.’’
‘‘इस बीमारी से ग्रस्त महिलाओं को प्रतिदिन पांच किलोमीटर और पुरुषों को सात किलोमीटर टहलने की सलाह दी जाती है. इसके अलावा यूवी किरणों और उपकरणों के रेडिएशन से सुरक्षित रहने की सलाह दी जाती है, इससे लंबे समय में मदद मिल सकती है. आखिरी बात यह है कि हमारे लिए लोगों को यह बताना बहुत जरूरी है कि, रूमैटॉयड आर्थराइटिस मैनेज करने योग्य स्थिति है और मरीजों को एक सेहतमंद जीवनशैली अपनाने के साथ ही सही उपचार लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.’’